केतु वैसे भी मारक ग्रह माना जाता है - लेकिन एक दिन इसने हमारी पिटाई का इंतज़ाम भी कर दिया था। दरअसल, मामला कुछ ऐसा है कि कॉलेज के दिनों में हम अपने दोस्त के साथ बैठे बतिया रहे थे। ज्योतिष में अपनी थोड़ी-बहुत रुचि है - लिहाज़ा कुछ सीखे फ़ंडे ठीक हैं या नहीं - ये जानने के लिए प्रैक्टिकल करते रहते हैं।
उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। अचानक कैंटीन में एक छात्र पहुँचा। उसका हाव-भाव और चेहरा कुछ ऐसा था कि मुझे लगा कि इसकी कुंडली में केतु कुछ गड़बड़ जरुर होगा (सीखे हुए फ़ंडों पर आधारित)। इसी दौरान, दोस्त से अचानक ज्योतिष पर चर्चा हो उठी तो ये बात हमने उससे भी कह डाली।
दोस्त ने कौतुहल में पूछा कि तुम ऐसा ऐसे कह सकते हो कि उसका केतु ख़राब है तो मैंने सामान्य शब्दों में कहा कि - "वैसे, कुछ ज्योतिषीय लक्षण हैं लेकिन सामान्य रुप से कहें तो उसके दाँत कुछ बड़े और बाहर को निकले हुए हैं, रंग और लंबाई भी कुछ ऐसे था कि उसका केतु ख़राब होने की आशंका है। इसके अलावा, मुझे लगता है कि उसे कभी न कभी काले कुत्ते ने काटा होगा।"
ये बात सीधे-सीधे मेरे और दोस्त के बीच थी। लेकिन, कुछ दोस्त ऐसे भी होते हैं - जो आपके दुश्मनों को मात कर दें। भाई ने अचानक कहा कि मैं उससे जाकर पूछता हूँ। मैंने कहा - "ये पूछना कि क्या उसे कभी किसी कुत्ते ने काटा है?" दोस्त ने उसके पास जो पूछा उसने हमारी ऐसी-तैसी करवा दी। दोस्त ने पूछा - "क्या तुम्हें कभी किसी काले कुत्ते ने काटा है।" उस छात्र ने जवाब दिया - "नहीं, लेकिन क्या बात है। तुम क्यों पूछ रहे हो"। हमारे मित्र का जवाब सुनिए - "वो पीयूष कह रहा है कि तुम्हारें दांत निकले हुए हैं इसलिए ज़रुर तुम्हें काले कुत्ते ने काटा होगा।"
लीजिए, यह जवाब किसी को भी बुरा लगेगा - तो उस छात्र को भी लग गया। थोड़ी देर में पता चला कि 40-50 छात्रों ने मुझे घेर लिया। थोड़ा बहुत हड़काया कि तुम ऐसे कैसे बात करते हो। मैंने उन्हें समझाया कि भइया अपना ऐसा कोई मक़सद नहीं था। हम ज्योतिष पर कुछ बात कर रहे थे और हमारे कहने का उद्देश्य किसी के शारीरिक हाव-भाव पर टीका-टिप्पणी करने का नहीं था। बहरहाल, दो-चार मिनट तक उन्होंने मुझे हड़काया। लगा कि कंटाप पर बजने को है - लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
इस क़िस्से की सीख यही है कि ऐसे हालात में तय कर लेना चाहिए कि आपका दोस्त या अन्य शख़्स किसी तीसरे से आपकी कही बात को किस तरह कहने जा रहा है। बहरहाल, इस घटना के बाद ख़ून में उबाल आया तो तय कर लिया कि अब उसकी हेकड़ी निकाल ही दी जाए। यार-दोस्तों ने भी वक़्त मुकर्रर कर दिया कि अगली सुबह कॉलेज में उसका बैंड-बाजा बजा ही दिया जाए। लेकिन, रात में ख़याल आया कि किसी की शारीरिक कमज़ोरी अथवा बनावट पर टिप्पणी करोगे तो उसे ख़राब लगना लाज़िमी है।
फ़िलहाल, वो जनाब इस ख़ुशफ़हमी में होंगे कि उन्होंने हमें हड़का दिया था। लेकिन, आज ऐसा लगता है कि अगर अब कभी वो लड़का मुझे मिल गया तो उसका टेंटुआ पकड़कर एक बात तो समझा दी जाए कि भइया तुमने हमें हड़काया नहीं था बल्कि हम खुद शांत हो गए थे क्योंकि हमें लगा था कि हमसे ग़लती हो गई। वरना, अपने शहर में किसी दूसरे शहर का छोरा हड़का जाए - ये तो घोर इनसलेट है भइए !
सोमवार, 2 अप्रैल 2007
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2 टिप्पणियां:
चलो कुछ तो सीख मिली!
वाह ऐसे दोस्त हों तो दुश्मन की क्या जरुरत। अपने साथ भी कई बार ऐसा हुआ है कभी मूड आया तो लिखेंगे। खूब किस्से ला रहे हो भईया लगे रहो।
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