शनिवार, 31 मार्च 2007

कोई तो मरी कुतिया ढूंढ लाओ

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
वो तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
- बशीर बद्र

आज अचानक होम लोन महँगा होने की ख़बर देखी तो बशीर बद्र का यह शेर याद आ गया। हालाँकि, सीधे-सीधे इस शेर का ख़बर से कोई लेना-देना नहीं है - लेकिन ध्यान आया कि घर बनाना कितना मुश्किल है।

अपने घर की याद आयी तो घर में काफ़ी दिनों से आयी सीलन की समस्या भी याद आ गई। बाथरूम में ज़बरदस्त सीलन है - लेकिन सोसाइटी के प्रेसिडेंट, वाइस प्रेसिडेंट आदि आदि को कोई चिंता ही नहीं (कई बार शिकायत करने के बावजूद)। बहरहाल, ये बोरिंग क़िस्सा मेरे घर और उसकी समस्याओं का नहीं बल्कि इस समस्या से याद आए एक दूसरे क़िस्से का है।

ये किस्सा है नॉर्वे का। नॉर्वे बहुत छोटा देश है, जहाँ महज़ कुछ लाख की आबादी है। भाई लोग सब खाते-पीते हैं और आसपास कोई पाकिस्तान-बांग्लादेश या चीन जैसा देश नहीं है कि हर वक़्त सीने पर मूंग दलता रहे। उसी नॉर्वे में हमारे एक परिचित संजीव रहते हैं। उनका कुछ लिखने-पढ़ने का धंधा है। जनाब काफ़ी साल से नॉर्वे में रह रहे थे तो वहाँ की एक राजनीतिक पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे डाला। वैसे, वहाँ ज़्यादा भारतीय नहीं हैं लेकिन क़रीब तीस-चालीस हज़ार भारतीय और कुछ हज़ार पाकिस्तानी हैं। इन्हें लुभाने के लिए ही संजीव को टिकट देने का मन बनाया गया।

संजीव के मुताबिक़ - उन्हें टिकट के सिलसिले में वहाँ प्रधानमंत्री के घर बुलाया गया। भाई साहब पहुँचे तो दनादन घर के भीतर घुसे चले गए। कहीं कोई पूछताछ नहीं - कोई लिखा पढ़त नहीं। संजीव परेशान - क्या हुआ? थोड़ी देर में एक सज्जन ने उन्हें बैठने को कहा तो संजीव बैठ गए। पता चला चंद मिनट बाद खुद प्रधानमंत्री दोनों के लिए चाय बनाते हुए संजीव के पास पहुँच गए। क्या भारत में कभी इस दृश्य की कल्पना की जा सकती है?

संजीव जीत गए तो रोज़ाना अपने क्षेत्र में होने वाली बैठको में भी जाना पड़ा। मज़े की बात ये कि नॉर्वे में कोई समस्या ही नहीं। इस बैठक में लोग चाय की चुस्कियाँ लेते और एक दूसरे से पूछते कि कहीं कोई समस्या हो तो बताएँ - चल कर उसे हल किया जाए।

बहरहाल, हद तो तब हो गई - जब एक महीने से ज़्यादा वक़्त तक कोई समस्या नहीं मिली। अचानक एक बैठक में एक लोकल नेता साहब इसी बात पर उखड़ गए कि कहीं कोई समस्या ही नहीं है तो हम यहाँ क्या झक़ मार रहे हैं। उन्होंने अचानक तैश में कहा - "अरे कोई तो कहीं मरी हुई कुतिया ढूंढ लाओ या कहीं किसी खंभे पर टूटा बल्ब दिखाओ"।

साफ़ है - नॉर्वे में ज़िन्दगी अपने ढर्रे पर चली जा रही हैं। कहीं कोई समस्या कोई सामाजिक परेशानी नहीं। पर इस क़िस्से के बाद मुझे लगा कि क्या कोई भारतीय बिना समस्या के कहीं रह सकता है, ज़िन्दगी का पूरा मज़ा ले सकता है?

5 टिप्‍पणियां:

Punit Pandey ने कहा…

यह नार्वे नामक देश पृथ्‍वी नामक ग्रह पर ही पाया जाता है क्‍या ?

Udan Tashtari ने कहा…

३० से ४० हजार भारतीय और कोई हलचल नहीं. बदनाम करा के छोड़ेंगे ये. अरे, कोई तो जागरुक बनो. तभी नार्वे से कोई हिन्दी ब्लागर नहीं है. :)

अनूप शुक्ल ने कहा…

कुछ कम करो भाई! कोई समस्या नहीं यह अपने में समस्या है!

संजय बेंगाणी ने कहा…

कैसी निरस जिन्दगी :(

अभय तिवारी ने कहा…

खूब समस्याएं हैं.. बस दिखती नहीं वहाँ.. दिखती हैं..अफ़्रीका में.. एशिया में.. दक्षिण अमेरिका में.. विकसित देशों की वेल्थ वहाँ से आती है.. और समस्याएं वहाँ जाती हैं..