बुधवार, 4 अप्रैल 2007

हाय, चैनल वालों ने जात मेरी लूटी रे....

जोधपुर के पुराने क़िले के पिछवाड़े शूटिंग चल रही है। बैकग्राउण्ड में क़िला दिखना है - थोड़ी दूर पर श्मशान। लाइट-साउण्ड और धुएँ की व्यवस्था की जा चुकी है। डायरेक्टर (कार्यक्रम का प्रोड्यूसर) ने कलाकार को अपना दृश्य समझा दिया है.... लेकिन तीन-चार री-टेक के बाद भी मज़ा नहीं आ रहा। वजह?

चैनल के एक भूतहा कार्यक्रम की शूटिंग के दौरान दृश्य श्मशान में बैठकर इंसान का मांस खाने का है। रिक्रिएशन यानि नाट्य रुपांतरण में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है - लेकिन डायरेक्टर को लगा कि दृश्य फ़िल्माने वाला कलाकार का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शहरी या मॉर्डन है।

आदेश हुआ कि कोई दूसरा कलाकार लाया जाए। अब, रात के आठ बजे, कहाँ से लाएँ कोई दूसरा कलाकार? लेकिन, शहर में ही रहने वाले ड्राईवर ने कहा कि वो कुछ व्यवस्था कर लाता है। थोड़ी देर में एक 15-16 साल की लड़की उसके साथ हाज़िर थी। डायरेक्टर ने अब उसको दृश्य समझाया। लेकिन, सीन सुनते ही लड़की उखड़ गई - "मैं ब्राह्मण हूँ। मैं मांस नहीं खाती... छि: छि: छि:"। डायरेक्टर ने उसे समझाया कि शव के पास बैठकर मांस खाना नहीं है बल्कि महज़ एक्टिंग करनी है। इसके लिए लड़की को एक हज़ार रुपये देना भी तय किया गया।

लड़की ने परफ़ेक्ट एक्टिंग की। भूतहा कार्यक्रम हिट रहा। लेकिन, इस प्रोग्राम के प्रसारित होने के दो-तीन दिन बाद लड़की का फ़ोन आया - "आप लोगों ने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी। मुझसे झूठ बोला। मैं ब्राह्मण लड़की हूँ। अब, टीवी पर मुझे मांस खाते हुए देखकर मेरे परिवार ने ही मुझे निकाल दिया है। आपने तो मांस कहा था - लेकिन टीवी पर बार-बार बताया गया कि मैं इंसान का मांस खाती हूँ।"

दरअसल, यह क़िस्सा है एक टेलीविजन चैनल के लिए बनने वाले एक भूतहा कार्यक्रम के दौरान का। यह लड़की ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। उसका परिवार भी ग्रामीण परिवारों जैसा सामान्य था। चैनल वालों ने उस लड़की का इस्तेमाल कर लिया - लेकिन पूरा सच नहीं बताया। वैसे, ये ज़्यादा बड़ी घटना नहीं है। रिक्रिएशन यानी नाट्य रुपांतरण के दौरान कई बार घटनास्थल के आस-पास के लोग ही एक्टिंग के लिए चुन लिए जाते हैं - लेकिन इस कोरी नौटंकी में कभी-कभार किसी की जात भी लुट जाती है.....।

अब, इसका ज़िम्मेदार कौन है - इसका जवाब कोई नहीं देता?

2 टिप्‍पणियां:

पंकज ने कहा…
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पंकज ने कहा…

पियुष भाई,
जात लूटी न डायरेक्टर ने, न मांस ने, नही कार्यक्रम ने जात लूटी एक हज़ार रुपए ने। अब इसके आगे और कोई स्पष्टीकरण आवश्यक नहीं है।
जब रुपया बोलता है, तो जात, धर्म, संस्कृति, नियम, अनुशासन सब तुल जाते हैं बारह के भाव।