"मुझे गुप्त रोग हुआ है"- दरअसल, ये स्टेटमेंट ही 1000 वोल्ट के करंट वाला है। लेकिन, साहब घबराने की बात नहीं-ये महज़ एक किस्सा है। किस्सा ऐसा-जिसने हमें भी कभी जोरदार करंट लगाया था।
बात कई साल पुरानी है। हम अपने परिवार समेत घर में बैठे गप्पबाजी कर रहे थे कि एक कज़िन की तबियत कुछ नासाज़ दिखायी दी। वो बालक उस वक्त करीब छह-सात साल का रहा होगा। हमने उससे पूछा कि- तबियत को क्या हुआ? उसने सीधे सीधे जवाब दे डाला-"मुझे गुप्त रोग हुआ है।"
उसके इस बयान को सुनकर वहां बैठे तमाम लोगों को एक पल के लिए मानों सांप सूंघ गया। सात-आठ साल का बच्चा यह क्या कह रहा है। लेकिन,जब इस गुप्त रोग का खुलासा हुआ-तो सभी ने पेट पकड़कर हंसना शुरु कर दिया। दरअसल,बालक के कहने का मतलब यह था कि उसकी तबियत किस वजह से नासाज़ है-यह उसे भी नहीं पता अलबत्ता तबियत कुछ गड़बड़ जरुर है। बस, इस गुप्त टाइप की बीमारी को उसने गुप्त रोग कह डाला। वैसे, इस शब्द "गुप्त रोग" के बारे में बालक ने तीन दिन पहले ही कानपुर से दिल्ली आते वक्त ट्रेन में बैठे बैठे दीवारों पर पढ़ा था।
विज्ञापनों की भाषा हमेशा से बच्चों के दिल पर असर डालती रही है। इस बात की तस्दीक यह किस्सा भी करता है और इससे पहले वाला किस्सा भी,जिसमें मैंने बताया था कि कैसे मेरे बालक ने कार्टून की भाषा का इस्तेमाल करते हुए हमें सरेबाजार लुच्चा साबित कर डाला था।
-पीयूष
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2007
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4 टिप्पणियां:
हा हा, अमां इतने मजेदार किस्से कहाँ से लाते हो।
भाई पीयूष ग़ज़ब का क़िस्सा है। मज़ा आ गया पढ़कर।
वाकई शीर्षक देखकर १००० वोल्ट का करंट लग गया था!!!
मजा आया पूरा पढ़ने के बाद. बधाई!! :)
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