मंगलवार, 24 अप्रैल 2007

वो बच्चा अपन लुच्चा

बच्चों की जुबां बदल गई है। बच्चे भले ही अभी भी मन के सच्चे हो, लेकिन कभी कभी हरकत ऐसी कर डालते हैं कि आप दीन-दुनिया के सामने लुच्चे साबित हो जाते हैं।

चंद रोज़ पहले की बात है। हम अपने साहबजादे को लेकर अपना स्टेटस बढ़ाने (खरीदने की औकात नहीं,पर एक दो पॉलिथीन टांग लो ताकि लगे कुछ खरीदा है) मॉल घूमने पहुंचे। साहबजादे अभी अभी तीन साल के हुए हैं और उनकी जुबां में तुतलाना बचा हुआ है। बहरहाल, मॉल में उनका इंटरेस्ट घूमना नहीं बल्कि झूले झूलना, बैटरी वाली कार चलाना वगैरह मे होता है। शनिवार के दिन दो बार पांच पांच मिनट कार में चक्कर लगाने के बाद जब जनाब के उतरने की बारी आयी तो साहब रोने लगे। हमने कहा-भइया, 100 रुपये ढीले हो गए हैं, अब आओ कुछ आइसक्रीम-वाइसक्रीम खाकर घर चलते हैं। लेकिन, जनाब टस से मस नहीं। हमारे बाप ने हमें कभी नहीं मारा तो इस परंपरा पर अपन भी टिके हुए हैं। लेकिन जनाब हमने थोड़ी आंखें क्या तरेरी ग़ज़ब हो गया।

भाई साहब ने पचासों लोगों की मौजूदगी में हमारे सामने हाथ जोड़ लिए और कहने लगा-"पापा, मुझे माफ कर दो, पापा मुझे माफ कर दो।" ये ऐतिहासिक दृश्य देखकर अपना खून सूख गया।
हाईप्रोफाइल लोग अपन जैसे टुच्चे आदमी की तरफ घूरे जा रहे थे-लेकिन बालक की शताब्दी स्पीड वाली जुबां से लगातार निकले जा रहा था-"पापा मुझे माफ कर दो "। कभी बच्चे को मारा नहीं और न इस बार ऐसी कोई गुंजाइश थी-फिर ऐसा क्यों ?


बहरहाल, ज़ालिम ज़माने के सामने बच्चे को बहलाया-फुसलाया और फौरन कार में दो चक्कर और लगवाए।

लेकिन, इस हरकत के पीछे का सच कुछ दिन पहले पता चला,जब हम बालक के साथ टीवी पर कार्टून देख रहे थे। इस दौरान, हमें बहुत से वो शब्द सुनायी दिए-जो हमारा बालक अब बड़बड़ाने लगा है। इसी में एक कार्टून करेक्टर बोला भी- "मुझे माफ कर दो- मुझे माफ कर दो"।

अपने समझ में आ गया था कि कार्टून ने बच्चों की भाषा बदल दी है।

वैसे,परसो बालक हमारे साथ खेलते हुए अचानक चिल्लाया- "कोई मेरी हेल्प करेगा"। इस बार हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वास्तव में,कार्टून फिल्मों ने बच्चों की जुबां बदल डाली है।

-पीयूष

3 टिप्‍पणियां:

RC Mishra ने कहा…

Ye bhi khoob rahi :)

संजय बेंगाणी ने कहा…

haa haa haa

ePandit ने कहा…

ही ही, शुक्र है वो कार्टूनों द्वारा बोली जाने वाली और चीजें नहीं बोला।