शुक्रवार, 30 मार्च 2007

बटई की ब्लू फ़िल्म

दोनों एक दूसरे के सामने थे। अवाक्। क्या करें, कहाँ जाएँ? अब क्या होगा।
क्या सोचेगा वो?

ये पहेली नहीं एक किस्सा है। किस्सा है - हमारे मुहल्ले के राजेश उर्फ़ बटई का। जहाँ तक मुझे याद आ रहा है बटई का नाम लटई पर रखा गया था। बचपन में बटई के पतंगबाज़ी के शौक़ के चक्कर में उसका नाम लटई पड़ा। शायद, पतंगाबज़ी में इस्तेमाल होने वाली किसी चीज़ का नाम लटई हुआ करता था।

लेकिन, किस्सा पतंगबाज़ी का नहीं- ब्लू फ़िल्म बाज़ी का है। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही बटई ने भी ब्लू फिल्म देखने का शौक फरमाना शुरु किया। उन दिनों औरेया में महज़ तीन थिएटर हुआ करते थे। इनमें जब कभी कोई एडल्ट फ़िल्म लगती - तो शहर के ज़्यादातर नौजवान मौका ताड़कर फिल्म निपटा देते थे।

वैसे, दर्शक एडल्ट फिल्म से ज़्यादा उन निहायत अश्लील दृश्यों को देखने थिएटर पहुँचते थे, जो थिएटर वाला बीच में घुसेड़ देता था। उस ऐतिहासिक वक़्त में कृष्णा थिएटर में एक एडल्ट फिल्म लगी। नाम याद नहीं। बटई फिल्म देखने पहुँचा। रात का शो था। फ़िल्म के शो के बीच में हर आठ-दस मिनट पर कुछ मारु दृश्य आता तो बटई "वाह-वाह " करता। इसी दौरान, जनाब एक-आध बार पास बैठे दूसरे दर्शक के पैर पर भी हाथ मार कर कहता - "वाह, गुरु मजा आ गया"। बटई से एक सीट छोड़कर पास बैठे सज्जन भी इसी तरह कुछ फ़िल्म के मज़े ले रहे थे। हालांकि, वो कमेंट नहीं कर रहे थे लेकिन हँसने की आवाज़ में उनकी खिलखिलाती हँसी भी शामिल होती थी।

कई धाँसू सीन आए। कई बार वाह-वाह हुई। फिर इंटरवल हुआ। दर्शकों ने कहा कि एक बार फिर ब्लू फिल्म जोड़ दे तो मज़ा आ जाए। लेकिन, इसी बीच बटई जनाब थम्सअप खरीदने स्टॉल पर पहुंचे तो....?
दोनों एक दूसरे के सामने थे। अवाक्। क्या करें, कहां जाएं? अब क्या होगा। क्या सोचेगा वो?
दरअसल, बटई के सामने उसके पिताजी खड़े थे। रात का शो था - दोनों थिएटर के भीतर बने स्टॉल पर थे - लिहाज़ा बहाना बनाना बेकार था। दिन के वक़्त बटई के बापू ने उसे थिएटर में देखा होता तो उस पर जूते बजना तय था। मौक़ा था कहने का "साले, दुकान छोड़कर यहाँ फिल्म देखने चला आया। वो भी इत्ती गंदी।"

लेकिन, अब मामला उल्टा था। बटई के बापू भी फँस चुके थे। कहना-सुनना बेकार था। बटई ने कहा - "रातउ में चैन नहीं है तुम्हें। उते अम्मा इंतजार कर रही होएँ और तुम इते फिल्म देखन चले आए हो"।
बटई ने इतना कहा और थिएटर से बाहर निकल आया। लेकिन, बापू ने पूरी फिल्म देखी। वो पैसे की कद्र जानते थे!

-पीयूष

6 टिप्‍पणियां:

Raag ने कहा…

हाहाहाहाहा, बहुत सही कहानी है।

Punit Pandey ने कहा…

बहुत खूब... पढ़कर मज़ा आ गया। अगर बटई के पिताजी ने पढ़ लिया तो वो आप पर मानहानि का मुक़दमा कर देंगे।

Udan Tashtari ने कहा…

किस्से तो सही धरे हो पास में.. :)

Sanjeet Tripathi ने कहा…

मजेदार किस्सा

संजय बेंगाणी ने कहा…

ऐसे ही खट्टे मिट्ठे किस्से जीवन में रस घोलते है. :)

ePandit ने कहा…

हा हा बहुत मजेदार कहानी। जरा कल्पना कीजिए उस क्षण की जब बाप-बेटा सामने पड़े होंगे। :)

वैसे किस्सा सच्चा है क्या?