सोमवार, 19 मार्च 2007

मिंटू दो उर्फ मुहब्बत का दुश्मन

पहला मिंटू अपना दोस्त नहीं था। बेचारा-हमारे दोस्त का दोस्त का है-लेकिन एक मिंटू हमारा भी दोस्त है। वैसे, सभी दूसरे मिंटूओं से क्षमायाचना करते हुए अति विनम्रता से मैं ये कहना चाहूंगा कि इस नाम में कुछ गड़बड़झाला तो है। मित्रों, हमारे एक दोस्त मिंटू का किस्सा भी इस बात की तस्दीक कर देता है। बात-करीब 17 साल पुरानी है-लेकिन लगती अभी जैसी ही है। ये किस्सा लिखने से पहले ही पूरा वाक्या मेरी आंखों के सामने घूम रहा है।

बात उन दिनों की है,जब हम हाईस्कूल में हुआ करते थे। वैसे,उम्र करीब 15 साल हुआ करती थी-लेकिन खुद को बड़ा समझने का भम्र हमें भी था। इन्हीं दिनों मुहल्ले से गुजरने वाली एक बेहद खूबसूरत लड़की हमें भी 'खूबसूरत' लग गई। मतलब ये कि वो लड़की रोज़ाना हमारी गली से गुज़रा करती थी-लेकिन हमने कभी उसे इस तरह नहीं देखा-जैसे एक दिन अचानक देख लिया। पहले आकर्षण की कोपलें फूटने के इस एतिहासिक पल में हमारा साथी था-मिंटू। अपने मित्र-मिंटू से हमने भी भावुकता में कह डाला-' यार ये लड़की बहुत खूबसूरत है, इससे दोस्ती होनी चाहिए'

लेकिन, हमें क्या मालूम था-मित्र मिंटू भविष्य की मुहब्बत की मां-बहन एक कर मिट्टी में मिला देगा ( मां-बहन का इस्तेमाल महज अनुप्रास को सार्थक बनाने की कोशिश के तहत किया गया है)। दरअसल,हुआ कुछ यूं कि उस लड़की का एक चचेरा मामा मिंटू के घर के पास बने एक हॉस्टल में रहा करता था। उसका मिंटू के घर के पास से गुजरना होता था-लिहाजा थोड़ी बहुत दुआ-सलाम भी थी। यह किस्सा उत्तर प्रदेश के एक कस्बे का है,जहां लड़का-लड़की की दोस्ती जैसी कोई चीज़ उन दिनों तो कम से कम नहीं हुआ करती थी। लेकिन, दोस्त मिंटू ने तो जैसे हमारी दोस्ती कराने की कसम उठा ली थी। तो जनाब उऩ्होंने क्या किया ? मिंटू ने लड़की के मामा को अपने पास बुलाया और कहा-' यार, मेरा एक दोस्त है पीयूष। वो तुम्हारी भांजी से बहुत प्यार करता है। बहुत अच्छा लड़का है। कुछ कराओ'। मामा ने ठोंका नहीं-ये गनीमत रही लेकिन शाम ढलते ढलते तीनों के परिवार वालों को इस अद्भुत प्रेम कहानी के अंजाम तक पहुंचने से पहले ही भनक लग गई। उसके बाद तो वही हुआ-जो होता है यानि पिटाई की नौबत। मिंटू बेवकूफ ने हमारी प्रेम कहानी का गला घोंट दिया। फिर सफाई ये दी- 'साला,उसका मामा तो कह रहा था कि काम करवा देगा, बड़ा झूठा निकला बदमाश'।
-पीयूष

1 टिप्पणी:

अभय तिवारी ने कहा…

ज़माना भरा पड़ा है ऐसे मोहब्बत के दुश्मनों से.. सब को याद कर कर के दिल के घावों को हरा कीजिये.. हम भी उँगली डाल डाल कर पूँछेंगे कि दर्द होता है क्या?..
अच्छा है!