शनिवार, 10 मार्च 2007

[हास्य] मिंटू आ......

किस्सा हमारे एक दूर के दोस्त का है (कृपया निकट दोस्त कतई न माने, वरना हमारे चरित्र को लेकर संकट खड़ा हो सकता है)

दोस्त का नाम है-मिंटू। आगरा में एक जगह है-सेब का बाज़ार। इस बाज़ार से गुजर चुके लोग जानते हैं कि ये पुराना बाज़ार वास्तव में रेड लाइट एरिया है। ऊपर कोठे-नीचे बाज़ार।

हमारे मित्र मिंटू को एक बार रेड लाइट एरिया में जाकर तफरी करने की इच्छा हुई। मन अकुलाया तो जनाब ने मन की बात अपने एक सखा से कही। सखा-खाया पीया आदमी था। स्कूल-कॉलेज में टीचरों ने भले कभी न पहचाना हो-रेड लाइट एरिया की सुंदरियां भाई को नाम से जानती थीं। इन जनाब ने मिंटू की व्यथा सुनी तो फौरन दर्द दूर करने का बीड़ा उठा लिया।

दो दिन बाद जनाब मिंटू को लेकर सेब का बाज़ार जा पहुंचे। पता-ठिकाना पहले से तय था-लिहाजा भाई मिंटू के साथ सीधे तय सुंदरी के कोठे पर जा पहुंचे। खेले-खाए भाई साहब तो बिना वक्त गंवाए सीढियां चढ़कर कोठे तक जा पहुंचे-लेकिन नीचे खड़े मिंटू की फूंक सरक गई। मिंटू ने अपने बाप से बिना पूछे बाग का फूल तक तो तोड़ा नहीं था-कोठे का फूल कैसे सूंघता ? मिंटू डर के मारे सहम गया। पसीना आ गया। लेकिन,भाई साहब ने ऊपर से चिल्लाया-मिंटू ऊपर आ। मिंटू पसीने में तर्र हो गया तो फिर आवाज़ आई-मिंटू ऊपर आ। इसके बाद- भाई फिर चिल्लाया-मिंटू ऊपर आता है या मैं नीचे आकर पकड़ ले जाऊं। भाई के नीचे आने की बात सुनकर मिंटू को ऐसा करंट लगा कि उसने बिना वक्त गंवाए अपना स्कूटर उठाया और रफूचक्कर हो गया।

लेकिन, किस्सा यहां खत्म नहीं होता। किस्सा यहां से शुरु होता है। किस्मत को अजीब खेल मिंटू के साथ ही खेलना था। इस हादसे को मिंटू भूला भी नहीं था कि अचानक दो दिन बाद मिंटू को अपने पिता के साथ सेब के बाज़ार से गुजरना पड़ा। स्कूटर के पीछे बैठे मिंटू का दिल धक धक करने लगा। लेकिन,यह क्या? मिंटू के पिता ने स्कूटर रोक दिया। लेकिन, किस्मत का खेल देखिए-स्कूटर उस पान की दुकान पर रोका-जो उसी कोठे के सामने था-जहां दो दिन पहले मिंटू के साथ एक हादसा होते होते बचा था।

मिंटू आंख छुपाए वहां खड़ा ही था कि एक आवाज़ ने मिंटू के पैरों से ज़मीन सरका थी। आवाज़ आई-मिंटू ऊपर आ.....। फिर आवाज़ गूंजी-मिंटू ऊपर आ। ऊपर देखा तो एक छैल-छबीली सुंदरी ने मिंटू को आंख मारते हुए कहा-मिंटू ऊपर आता है या मैं नीचे आऊं।

ये सुनकर मिंटू कुछ सोचता या करता-इससे पहले ही मिंटू के बाप ने अपनी चप्पल उतारी और मिंटू की धुनाई शुरु कर दी। लोगों ने बचाने की कोशिश करी तो मिंटू के बाप ने कहा- इस नालायक को साली ये लौंडिया तक पहचानती हैं। फिर क्या था-मिंटू पर इतनी चप्पलें बरसीं कि आज भी कोई अगर "मिंटू आ " कहता है तो वो सिहर उठता है।

अब-यह किस्सा वास्तव में मिंटू के दुर्भाग्य की कहानी है - लेकिन शायद एक सीख भी कि अगर हिम्मत न हो तो गलत काम करने की बात तो दूर-उसकी राह में एक कदम बढ़ाना भी आफ़त मोल लेना है।

-पीयूष

3 टिप्‍पणियां:

ePandit ने कहा…

वाह मिंटू की कहानी सुनकर मजा आ गया। बेचारा मिटूं।

अभय तिवारी ने कहा…

मज़ेदार है...

jay ने कहा…

mast lika maja aa gaya.