रविवार, 6 मई 2007

जब बाबा जी बजवा देते हिन्दी में घंटा !

तुम्हारी मौसी मुंबई में हैं।
तुम्हारे जन्म की तारीख फलां है।
तुम्हारे घर में ऐसा उपकरण आऩे वाला है,जो पूरे कस्बे में अभी नहीं है।
बेटी, तुम्हारे पति आज बैंक नहीं गए।

बाबा जी की हर बात सही निकली। चमत्कार को नमस्कार करना ही पड़ा।

ये बात सन् 1993 की है शायद। उन दिनों हमारी जान-पहचान एक बाबा जी से हुई। बाबा जी भले इंसान थे, कभी कुछ मांगा नहीं-लिया नहीं।

खास बात ये कि हमारे बारे में,हमारे पड़ोसियों के बारे में बतायी बातें सच निकलीं। हमने अपने रिश्तेदारों को भी दिल्ली-कानपुर-आगरा से आऩे का न्यौता दे डाला। भइए, बाबा जी चमत्कारी टाइप के हैं, पूछ सको तो पूछ।

वैसे, मैं ईमानदारी से कहता हूं कि उन्होंने कुछ बातें ऐसी बतायीं-जो शायद मेरे अलावा किसी और को नहीं मालूम होंगी।

ज़ाहिर है, बाबा जी ने अपने प्रभावित कर रखा था। औरेया के उन बाबा जी का नाम याद नहीं, क्योंकि हम उन्हें बाबा जी ही कहते थे, लेकिन लगातार उनसे संपर्क होने के कारण उनका हमारे मुहल्ले में आना-जाना सामान्य हो गया था। उनके मुरीदों की संख्या लगातार बढ़ रही थी-और कोई ऐसा शख्स नहीं मिला था-जो कहे कि बाबा फ्रॉड हैं।

इन्हीं दिनों, हमारे इंटर के पेपर नजदीक आ गए। पहला पेपर हिन्दी का था। लालच बुरी बला है-और हम लालची नहीं, ऐसा भी नहीं। मन मे खयाल आया कि अगर बाबा जी चमत्कार से सवाल बता दें तो मज़ा आ जाए। लफड़े खत्म।

हमनें ये दिली ख्वाहिश बाबा जी को बतायी तो उन्होंने भी कह डाला- पेपर से एक दिन पहले आना।

भइए, हम और हमारा दोस्त पेपर से ऐन पहले के दिन शाम को बाबा जी के पास पहुंच गए। बाबा जी ने किताब में 10-12 सवालों पर टिक मार्क लगा दिया। हमने सोचा कि वाह बेटा! हो गया खेल! अब तो झंडा गढ जाएगा। दरअसल, बाबा जी पर अविश्वास करने का कोई ठोस कारण नहीं था।

रात में इम्तिहान की आखिरी तैयारी में जुटे तो उन सवालों को ठोक-बजाकर समझ लिया-जिन्हें बाबा जी ने बताया था। लेकिन, पहला पेपर था और अपन अक्ल से बिलकुल चिरकुट नहीं थे ( थोड़े तो थे ही, तभी गए थे बाबा जी के पास)-लिहाजा बाकी तैयारी भी कर डाली।

इम्तिहान वाले दिन अपनी दोस्ती का हक अदा करने के लिए कुछ दोस्तों को बाबाजी मार्का सवाल आउट कर डाले। भाई, यारी का सवाल है।हम 100 नंबर लाएं, अपना दोस्त 60 भी नहीं- ये अच्छी बात नहीं है। सो, दोस्तों को कुछ सवाल ये कहकर बता डाले कि भइए,बहुत इंपोर्टेंट सवाल है-किसी हिन्दी के विद्वान अंकल ने बताए हैं।

लेकिन, पर्चा आया तो एक पल के लिए हवाइयां उड़ गईँ। बाबा जी पूरी तरह फेल। एक सवाल नहीं गिरा साला पर्चे में उऩका। वो तो अच्छा था कि तैयारी ठीक ठाक थी और हिन्दी में अपना हाथ तंग नहीं था-वरना बाबा जी ने तो बजवा ही दिया था हिन्दी में घंटा। पेपर अच्छा ही हुआ...।

इस वाक्ये के बाद बाबा जी के पास हमारा जाना धीरे धीरे छूट गया। कई वजहों से। लेकिन,यह मानने को अभी भी मन नहीं करता कि वो फ्रॉड थे।

हां, कुछ ज्ञानी टाइप के लोगों ने बाद में कहा-बाबा जी के पास एक जिन्न था, जो भूत की बातें तो खोज लाता था, पर कल क्या होगा-इसमें जिन्न की भी हवा निकल जाती।

अब कोई कुछ भी सोचे-लेकिन दो बातें साफ हैं। पहली बात ये कि बाबा जी ने कई बातें बिलकुल ठीक बताई थीं, इसलिए उऩ पर यकीं हो गया। दूसरी बात ये कि अगर धोखे में भी हम अगर बाबा जी पर ही पूरा यकीं कर लेते तो 12वीं में हमारा हिन्दी में ही घंटा बज जाता। जी हां-हिन्दी। जिसमें किसी का घंटा नहीं बजता। साइंस,मैथ्स में तो दुनिया का घंटा बजता है,हमारा पहली बार हिन्दी में बज गया होता।
-पीयूष

4 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

आप तो सस्ते में बच गए और जीवन भर के लिए सही पाठ पढ़ लिया सो अलग.
घुघूती बासूती

ePandit ने कहा…

चूंकि बाबाजी की पिछली बताई सब बातें सच थी और वे कुछ पैसा वगैरा भी नहीं लेते थे इससे मुझे लगता है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया ताकि आप जीवन भर के लिए मेहनत का पाठ पढ़ लें और शार्टकटों के चक्कर में न पड़ें।

Udan Tashtari ने कहा…

चलो, यह समझ आ गया कि पूरा अंधविश्वासी होना ठीक नहीं है. बच ही गये, बस यही बाबा का कृपा मान लो.

क्रिकेट में है मनोरजंन ने कहा…

कुछ कीमत दिए बगैर मुफ्त मे सलाह लेने का नतीजा आपने अच्‍छा भुगता। वैसे आपका ये लेख जब बाबा जी बजवा देते हिन्‍दी में घंटा मुझे बहुत अच्‍छा लगा। बाबा,साधुओं पर अंधविश्‍वास कर लोग अपना बहुत कुछ खो चुके है खैर इस मामले में आप लक्‍की रहें। वैसे इन बाबाओं को केवल एक चीज आती है वो है लोगों को बेवकुफ बनाना।