मंगलवार, 1 मई 2007

यूपी बोर्ड धन्य हो !

सीबीएसई के नतीजे आने वाले हैं। सुना है, बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है, तब जाकर सीबीएसई बोर्ड के बच्चे 80-90 फीसदी अंक ला पाते हैं। बड़ी मारा मारी है जनाब । लेकिन, अपन तो ठहरे देहाती- वो भी यूपी बोर्ड वाले।

भइया, किस्सा यूं याद आ गया, जब एक सीबीएसई बोर्ड वाले बच्चे को रिलज्ट के तनावग्रस्त हुए देखा। बहरहाल, अपन को भरोसा है कि वो पास हो जाएगा। दिक्कत यह है कि बच्चे पास नहीं होना चाहते, नंबरों में छप्पर फाड़ देना चाहते हैं। अगर 100 से भी ज्यादा नंबर लाने के लिए कोई ट्यूशन शुरु हो जाए तो बच्चे वहां भी जाने लगें।

बहरहाल,अपना किस्सा तो पास होने वाला है। यूपी बोर्ड के दसवीं के इम्तिहान के नतीजे आने को थे। उन दिनों अख़बार में रिजल्ट प्रकाशित होता था। नेट-फेट कुछ नहीं था। ये सुविधा नहीं थी कि चुप्पे से रिलल्ट देखा और चादर तान के सो गए। तब तो पूरा मोहल्ला अखबार के पीछे दौड़ता था, और उसी वक्त झंडा गढ़ जाता था या उखड़ जाता था।

कल्याण सिंह ने नकल नहीं होने दी थी-लिहाजा सारे शेर ढक्कन हो लिए थे। अपन नकलची नहीं थे (कम से कम 12वीं तक) -लेकिन माहौल में इतना टेरर था कि फेल होने की पूरी आशंका थी। नतीजे वाला अखबार कानपुर से औरेया पहुंच चुका था। अपने चेहरे पर झूठी मुस्कुराहट तैर रही थी। पिता जी ने आश्वासन दिया- कुंभ का मेला नहीं है,जो....कोई बात नहीं-फेल हो गए तो भी कोई बात नहीं...

इस आश्वासन से बल मिला लेकिन डर के मारे दिल धक धक कर रहा था। पर यूपी बोर्ड धन्य हो....। यूपी बोर्ड के इतिहास में महज 14 फीसदी रिजल्ट आया और अपन पास हो गए। सेकेन्ड डिवीजन।

लेकिन,यूपी बोर्ड की सही मायने में उदारता 12वीं के इम्तिहान के दौरान दिखायी पड़ी। अपन मैथमेटेक्सि के छात्र थे। हालांकि, आज पूरे ब्लॉग जगत के सामने यह स्वीकार करता हूं कि अगर गणित का मतलब महज बीजगणित होता तो नंबरों में चंद गोल बीज से ज्यादा कभी कुछ नसीब नहीं होते। लेकिन, भगवान ने ही अंकगणित भी बनायी है। खैर, अपन मैथमेटिक्सि के छात्र थे। फिजिक्स-कैमिस्ट्री भी थी। गुमान था कि भौतिक विज्ञान में झंडा गाढ देंगे। हिन्दी-अंग्रेजी तारणहार बनेंगी। कैमिस्ट्री ठीक ठाक है ही और गणित में भी 45-50 नंबर आ ही जाएंगे।

हिन्दी-अग्रेजी और कैमिस्ट्री के पेपर ठीक ठाक निपट लिए। लेकिन,फिजिक्स का पेपर उतना शानदार नहीं हुआ-जितना सोचा था। लगा, अब फर्स्ट डिवीजन नहीं आएगी। मूड उखड़ गया तो अपन भी उखड़ लिए। सोचा, अब पेपर ही नहीं देने। ड्रॉप । फिर खयाल आया कि इम्तिहान देने नहीं पहुंचे तो घर पर पता चल जाएगा। मोहल्ले के लड़के सारा प्लान गुड़गोबर कर देंगे-सो तय किया कि पेपर देने पहुंचेगे पर लिखेंगे कुछ नहीं।

इसी दौरान,दोस्तों से बात हुई तो हमने कह डाला-"अपना पास होना तो मुश्किल है"

मजे की बात देखिए, एक दोस्त ने हम पर भरोसा जताया और बोला-"ऐसा हो नहीं सकता"

इस बात पर एक किलो रमाकांत की मिठाई की शर्त लग गई। हमने सोचा-चलो फेल होंगे, लेकिन मिठाई तो पक्की हो ही गई।
आखिरी इम्तिहान गणित का था। गणित में तीन पेपर होते थे। हमने पहले पेपर में कुछ नहीं लिखा अलबत्ता दो-चार सवाल आते थे तो उन्हें हल कर दिया। तीन घंटे बैठे रहे और चलते चलते सब सवाल काट कर "रफ" लिख डाला। दूसरे पेपर में भी यही खेल किया। तीसरे पेपर के साथ इंटर की परीक्षाएं खत्म होनी थी। खूब नकल हुई। दोस्त-यारों ने खाली बैठा देख कहा- क्या चाहिए, कौन सा सवाल...बताओ? अपन ने कहा, नहीं भाई, हो गया।

नतीजे आए, तो अपन उतने तनावग्रस्त नहीं थे। इस बार मालूम था कि फेल होना है। घर पर कोई कुछ न कहे, इसलिए घर पर भी ऐलान कर दिया कि फेल होना तय है।

लेकिन,धन्य हो यूपी बोर्ड। खुदा जाने किन मास्साब ने कॉपी जांची? उन रफ सवालों पर भी अंक दे डाले और गणित में चार ग्रेस मार्क्स के साथ हमें पास कर डाला। कुल अंक आए 50 फीसदी।

यूपी बोर्ड की इसी महिमा ने हमें पत्रकार बना दिया.....कैसे..यह किस्सा फिर कभी। हां, रिजल्ट आते ही एक किलो मिठाई खाने वो साला दोस्त भी फौरन टपक पड़ा था।

-पीयूष

5 टिप्‍पणियां:

नीरज दीवान ने कहा…

सभी बोर्ड ऐसे ही होते हैं. यूनीवर्सिटी का भी यही हाल हुआ है.

पत्रकार, पुलिस और पॉलीटिशियन.. दुर्घटनाओं से बन जाते हैं. ये वो लोग है जो कहीं और फिट नहीं होते.

Arun Arora ने कहा…

दुख जयादा किस बात का हुआ पास होने का या लड्डू खिलाने का कृपया खुल कर बताये

ePandit ने कहा…

हे हे, यूपी बोर्ड की जय हो!

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

इत्ता बढ़िया सटायर है. इस पोस्ट का "मैं" और आप एक व्यक्ति नहीं लगते. सच-सच बतायें कितने नम्बर आये थे दसवीं-बारहवीं में?

यूपी बोर्ड को मैं कुछ नहीं कहूंगा. उससे सामना नहीं हुआ था. अगर बोर्ड इतना चौपट है तो चल कैसे रहा है?

Piyush ने कहा…

ज्ञानदत्त जी,
अब तो बन गए, जो बनना था-लिहाजा झूठ बोलने का कोई मतलब नहीं। और जो सपने हैं,उन पर दसवीं-बाहरवीं के नंबरों का कोई असर नहीं पड़ने का..
10वीं में 51 फीसदी और 12वीं में 50 फीसदी...
लीजिए हो गया निराकरण...?