बुधवार, 3 सितंबर 2008

मुहब्बत जो कराए, सो कम है

ज़िंदगी में कुछ यादें ऐसी होती हैं,जिनकी याद भर आते ही अब होंठों पर मुस्कान तैर जाती है। लेकिन,घटना(हादसा) के वक्त काटो तो खून नहीं जैसा मामला होता है। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा आज याद आ गया है।

फतेहपुर सीकरी के एलीफेंट टॉवर की महिमा आप सुन चुके हैं। और उसका नतीजा भी मालूम है। लेकिन, एलीफेंट टॉवर पर चढ़ने और हमारे विवाह के बीच एक दौर और आया था-"एंगेजमेंट पीरियड"। बड़ा रुमानी दौर होता है ये। अब सगाई हो चुकी थी, तो अपनी भावी पत्नी से फोन पर बतियाने की खुली छूट मिल चुकी थी। लेकिन, हिन्दुस्तानियों को उंगली पकड़ कर पौचा पकड़ने की आदत होती है,सो इस खुली छूट का नाजायज फायदा उठाना हमने शुरु किया। वो ऐसे कि दिन तो दिन...रात में तीन-चार और कभी कभी पांच बजे तक बतियाते रहते। अब,क्या बात होती,ये पूछने का आपको हक नहीं है!

तो जनाब,ऐसी ही एक अंधियारी रात को हम मोहतरमा से बतिया रहे थे। चूंकि,वार्ता की ये रात्रिकालीन सेवा रात 12 बजे ही शुरु होती थी,तो सेवा सुचारु रुप से चल रही थी। रात के तीन-साढ़े तीन बज रहे थे कि अचानक फोन कट गया। हमारे फोन से रिंग टोन गायब! मुश्किल ये कि ऐसी हालत में दूसरी तरफ से फोन लगाने की कोशिश जारी रहनी थी।

अब,मरता क्या न करता। रात के तीन बजे घर की बालकनी में मेन टेलीफोन तार को देखने का बीड़ा उठाया। घर के अंदर से ऊंचा स्टूल सटाया और बारीकी से जांच की गई। गॉट इट....! तार ही कुछ निकला सा दिख रहा था...अब काम बन गया......।

बस,काम बन जाने की सोच के साथ अपन तल्लीनता से रात के साढे तीन बजे फोन ठीक करने में जुट गए। लेकिन, इस ऑपरेशन "रात्रि सेवा" को पूरा कर हम नीचे उतरते,इससे पहले हमारी आंख नीचे उतरी, और देखा तो हमारे बापू खड़े होकर पूरा तमाशा देख रहे थे।

अंधियारे में बापू के चेहरे पर क्रोध था या ज्ञान से पहले का कालिदास पाने का पश्चाताप-ये तो अपन नहीं देख पाए। लेकिन,पिताजी ने ये कहकर और हालत खराब कर दी....."क्यों,फोन कट गया था क्या?"
होश फाख्ता थे,शब्द जुबां का साथ छोड़ चुके थे। गर्दन हिलायी,और फौरन बिस्तर पर शरीर दे मारा। हां, थोड़ी देर बात एक घंटी मारकर भावी पत्नी को जगाया...बताया....और "हादसे का ज़िक्र" कर फिर सो गया....।

8 टिप्‍पणियां:

PREETI BARTHWAL ने कहा…

पिता जी का डर फिर भी दुबारा फोन करके घटना बता ही डाली रात में। बहुत खूब

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

यह तो एक यादगार संस्मरण बन गया होगा आपके लिए।काफी रोचक लगा।

डॉ .अनुराग ने कहा…

एक हाथ पढ़ा नही ये शुक्र है.....किस्सा मजेदार है...

कामोद Kaamod ने कहा…

रोचक संस्मरण

Anwar Qureshi ने कहा…

BADIYA HAI ...

Udan Tashtari ने कहा…

५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.

asha mishra ने कहा…

aapka naya pehlu aapke post ke jariye maaloom pada. sach maaniye mood achha ho jata hai aapke posts padhkar.

Unknown ने कहा…

bahut khub yaar shadi k pahale yahi hal hota hai.