“मेरी जिंदगी का ख्वाब है सत्तर एमएम की फिल्म बनाना। लेकिन अभी वो बहुत बाद की बात है”
२० अप्रैल १९९७ को एक इंटरव्यू में लवलीन ने मुझसे ये बात कही थी। आज करीब १२ साल बाद अचानक मुझे लवलीन का ये स्टेटमेंट शिद्दत से याद आ रहा है,जब हॉलीवुड के कोडक थिएटर में स्लमडॉग मिलिनेयर को मिले आठ अवॉर्ड लेने के बाद पूरी टीम के बीच लवलीन का चेहरा दिखा।
लवलीन का संभवत पहला इंटरव्यू मैंने लिया था। दैनिक जागरण के लिए। राजीव कटारा जी से (उस वक्त वो फीचर एडिटर थे) सहमति लेकर मैंने लवलीन का इंटरव्यू किया था। वो उन दिनों एआईआर एफएम पर एंकर थी। ब्रोकन हार्ट नाम से एक प्रोग्राम एंकर करती थी रात ११ बजे।
लवलीन से पहली मुलाकात आकाशवाणी भवन में ही हुई। जहां कैंटीन में उससे पूरा इंटरव्यू किया। इंटरव्यू लेने का मकसद आकाशवाणी की एक एंकर से पाठकों को रुबरु कराना था,सो ज्यादातर सवाल रेडियो से जुड़े थे। लवलीन ने बताया कि वो जामिया से मास कम्यूनिकेशन का कोर्स करने के दौरान फर्स्ट इयर में ही एफएम से जुड़ गई। बताया कि ज्यादा मजा हिन्दी कार्यक्रमों को करने में आता है क्योंकि ये अपनी भाषा है। बताया कि वो जल्दी ही टीवी पर भी कुछ कार्यक्रमों की एंकरिंग करने वाली है। (बाद में सुहैब इलियासी के प्रोग्राम इंडियाज मोस्ट वांटेड के पहले पांच सात एपिसोड लवलीन ने ही एंकर किए)। लेकिन,बाद में लवलीन ने जो कहा वो था-
“मेरी जिंदगी का ख्वाब है सत्तर एमएम की फिल्म बनाना। लेकिन अभी वो बहुत बाद की बात है”
इंटरव्यू २३ अप्रैल को प्रकाशित हुआ तो लवलीन का कर्टसी फोन आया। दिलचस्प बात ये कि उसी दिन उसी पेज पर नसीरुद्दीन शाह का इंटरव्यू प्रकाशित हुआ था ठीक लवलीन के इंटरव्यू के नीचे। लेकिन,नसीरुद्दीन शाह का इंटरव्यू चौड़ाई में आधा था,जबकि लवलीन का इंटरव्यू खासा बड़ा। लवलीन इस बात से थोड़ी उत्साहित और थोड़ी Embarrass थी। आखिर,नसीरुद्दीन शाह उसके फेवरेट एक्टर हैं,और उन्हीं की जाने भी दो यारों फेवरेट फिल्म।
इस मुलाकात के बाद लवलीन से तीन चार मुलाकातें हुईं। फोन पर कभी कभार अभी भी बात होती है। वो मीरा नायर के जुड़ी। अर्थ की शूटिंग के दौरान। फिर, दीपा मेहता के साथ काम किया। और अब डैनी बॉयल के साथ।
लवलीन की मौजूदगी ने ही इस फिल्म और इस ऑस्कर को खास बनाया है। इसकी वजह है। दरअसल,लवलीन टंडन फिल्म की को-डायरेक्टर है,और उन्हे ऑस्कर के लिए बॉयल के साथ नामांकित करने की मांग भी उठी। लेकिन,लवलीन शायद जानती है कि उन्हें बॉयल ने ही को-डायरेक्टर बनवाया है,लिहाजा उन्हें संयुक्त रुप से नामित होने से मना कर दिया। ये लवलीन का बड़प्पन भी है। लेकिन,को-डायरेक्टर के रुप में लवलीन की मौजदूगी ही फिल्म को पूरी तरह भारतीय बनाती है। फिल्म के एक्टर और तकनीशियन कई हॉलीवुड फिल्मों में काम करते रहे हैं,लेकिन ये पहला मौका है कि जब ऑस्कर जीतने वाली किसी फिल्म का को-डायरेक्टर भारतीय हो। ये अलग बात है कि स्लमडॉग के डायरेक्टर के रुप में डैनी को अवॉर्ड मिला लेकिन लवलीन की भूमिका कम नहीं रही। कास्टिंग से लेकर, स्क्रिप्ट में हिन्दी संवादों तक में लवलीन ने ही अपनी भूमिका निभायी है। खैर, लवलीन को ऑस्कर अवॉर्ड समारोह में देखकर ही अच्छा लग रहा है।
अब, लग रहा है कि लवलीन का ख्वाब सच होने को है। पूरी तरह ………………॥
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
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